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कविता

पृथ्वी पर हस्ताक्षर

मुकुट सक्सेना


रोज सुबह उगता जो इंद्रधनुष आँखों मे
मैंने तो देखा है
तुमने भी देखा क्या?

पीड़ा के जल में ही
शुभ कमल खिलते हैं
दुर्दिन के भँवरे
मकरंद लिए मिलते हैं
जीवन का स्पंदन, फूल और परागों में
मैंने तो देखा है
तुमने भी देखा क्या?

इच्छा के मरुथल में
तृष्णा है अंतहीन
खोज रहे तृप्ति मगर
पास नहीं दूरबीन
सरस्वती जल बहता, अब भी मरु के तल में
मैंने तो देखा है
तुमने भी देखा क्या?

सूर्य नित्य करता है
पृथ्वी पर हस्ताक्षर
और प्रकृति पढ़ती है
उस का हर-हर अक्षर
काल चक्र गतिमय है, क्षण-क्षण नव सर्जनहित
मैंने तो देखा है
तुमने भी देखा क्या?


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